वो सारी बातें ख़्वाब हुई और ख़्वाब से फिर अज़ाब हुई,
जब तुम को हवा के झोंके से पैगाम हमारा मिलता था,
जब मेरी इक नज़र से ही चेहरा ये तुम्हारा खिलता था.
कुछ याद सा तुम को हैं जाना?
जब फ़ोन की आदत रोज़ की थी, कुछ देर जो मुझको हो जाती,
तुम घंटों रूठा करती थी?
कभी गीतों की कभी शेरों की,
तुम ख्वाहिश मुझ से करती थी,
कभी प्यार था मेरी बातों से, मेरे चेहरे से मेरी आँखों से,
और झांक के मेरी आँखों में तुम खुद को ढूँढा करती थी.
इक दो दिन देख ना पाओ तो तुम बेकल बेकल रहती थी,
और अब तो ऐसा आलम हैं,
कोई चाहत हैं ना उल्फत हैं,
क्या प्यार मोहब्बत और वफ़ा, इस ज़िक्र से तुम को वेह्शत हैं?
मैं लाख तसल्ली खुद को दूं के, अब भी तेरी ख्वाहिश हूँ,
पर धोखा आखिर धोखा हैं, कब तक दिल को बहलाएगा?
दो पल की खुशियाँ दे कर ये मुझे सदियाँ लहू रुलाएगा,
क्यूँ तुम तकदीर से लड़ते हो?
जब तुम को हवा के झोंके से पैगाम हमारा मिलता था,
जब मेरी इक नज़र से ही चेहरा ये तुम्हारा खिलता था.
कुछ याद सा तुम को हैं जाना?
जब फ़ोन की आदत रोज़ की थी, कुछ देर जो मुझको हो जाती,
तुम घंटों रूठा करती थी?
कभी गीतों की कभी शेरों की,
तुम ख्वाहिश मुझ से करती थी,
कभी प्यार था मेरी बातों से, मेरे चेहरे से मेरी आँखों से,
और झांक के मेरी आँखों में तुम खुद को ढूँढा करती थी.
इक दो दिन देख ना पाओ तो तुम बेकल बेकल रहती थी,
और अब तो ऐसा आलम हैं,
कोई चाहत हैं ना उल्फत हैं,
क्या प्यार मोहब्बत और वफ़ा, इस ज़िक्र से तुम को वेह्शत हैं?
मैं लाख तसल्ली खुद को दूं के, अब भी तेरी ख्वाहिश हूँ,
पर धोखा आखिर धोखा हैं, कब तक दिल को बहलाएगा?
दो पल की खुशियाँ दे कर ये मुझे सदियाँ लहू रुलाएगा,
क्यूँ तुम तकदीर से लड़ते हो?
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