
मुदतों की रातें जागने के बाद सोना चाहता हूँ,
नींद की चादर तान कर खवाबों में खोना चाहता हूँ,
हर तरफ फूल की पत्तियां बिखरी हुई हैं,
मैं इन पत्तियों को चूम लेना चाहता हूँ,
कोई खिड़की नहीं इस घर में रौशनी के लिए,
उजाले के लिए घर से निकलना चाहता हूँ,
ये चाँद सा बच्चा ना जाने किस का....रो रहा है,
मैं इस मासूम बच्चे को हँसाना चाहता हूँ,
कोई भी काम करना हो तो पास आइना रखो,
मैं अच्छी अच्छी बातें आलम को बताना चाहता हूँ.

No comments:
Post a Comment