वह हाथ जो पोंछते थे आंसूं मेरे,
मिट जाते थे ग़म जिनकी दुआओं के असर से,
ढूंढते हैं वो काँधे, रोती थी आँख जिन पर,
माँ-बाप का साया जब उठ जाता है सर से!
ऊँगली पकड़ कर चलना, हजार ख्वाहिशें करना,
गुजरती थी उनकी ज़िन्दगी, हमारे ही डगर से,
याद आती है वो बातें, दिल रोता है आह अक्सर,
माँ-बाप का साया जब उठ जाता है सर से!
वह रूठना हमारा, वह आंसुएँ बहाना,
पूरी होती थी ख्वाहिशे, हमारे इस असर से,
बाग़ आते हैं याद, चुभते हैं कांटे अक्सर,
माँ-बाप का साया जब उठ जाता है सर से!
दिल तोडना ना उनका ना तकलीफ कभी देना,
निकालना है तुम्हें ही उन्हें अश्कों के सहर से,
यतीमों को देखो उन्हें जा कर समझो,
क्या होता है तब,
माँ-बाप का साया जब उठ जाता है सर से!
वह धुंधली सी आँखें वह मासूम सा चेहरा,
यतीमों को देखोगे जब तुम उनकी नजर से,
समझ जाओगे आह तुम भी, क्या होता है तब,
माँ-बाप का साया जब उठ जाता है सर से!
एहसास-ए-इल्तेजा है, एक बात मेरी मानो,
अपना आशियाना बनाना, उनकी मोहब्बतों की असर से,
बहुत तकलीफ होती है, होता है काश होंठो पे अक्सर,
माँ-बाप का साया जब उठ जाता है सर से!
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