
मैं तो अब तक उसी गुज़रे मोड़ पर ही बैठा रोता हूँ..
सब मालुम है कुछ लौटकर नहीं आता मगर
कमबख्त है ये आँखों की नमी कम क्यूँ नहीं होती….
अब तो सब सूना है मेरे आस पास सिवाए तेरे एहसास के…..
मैं किसे और क्यूँ समझाता जाऊं…
मुझे तो खुद से लड़ना है और तेरी
धुंधली होती यादों में ही डूबे रहना है…
बैठा हूँ खामोश तेरी तन्हाई के शिकवे में
सुबह दोपहर और फिर शाम इसका ख्याल अब सताता नहीं.
वक़्त की शाख पर मेरे लिए सिवा तेरी यादों के कुछ बचा ही कहाँ है...
अब कोई इल्तेजा किससे करूँ और कोई तमन्ना भी नहीं….
निगाहों की यह धुल कितनी नमी संजोये बैठी है मैं भी देखूं ज़रा
जहाँ भर को ही तन्हाई में डूबा दूंगा तड़पते आंसुओं से…….
साँसे जो रोज़ कभी आती हैं हौले से
तेरी खुशबु का दामन ले आती है चुपके से
सबसे अब दूर हो गया हूँ ना जाने किस बहाने से
मैं मैं ही ना रहा हूँ तेरे फ़साने से……………….
मैं किसे और क्यूँ समझाता जाऊं…
मुझे तो खुद से लड़ना है और तेरी
धुंधली होती यादों में ही डूबे रहना है…
बैठा हूँ खामोश तेरी तन्हाई के शिकवे में
सुबह दोपहर और फिर शाम इसका ख्याल अब सताता नहीं.
वक़्त की शाख पर मेरे लिए सिवा तेरी यादों के कुछ बचा ही कहाँ है...
अब कोई इल्तेजा किससे करूँ और कोई तमन्ना भी नहीं….
निगाहों की यह धुल कितनी नमी संजोये बैठी है मैं भी देखूं ज़रा
जहाँ भर को ही तन्हाई में डूबा दूंगा तड़पते आंसुओं से…….
साँसे जो रोज़ कभी आती हैं हौले से
तेरी खुशबु का दामन ले आती है चुपके से
सबसे अब दूर हो गया हूँ ना जाने किस बहाने से
मैं मैं ही ना रहा हूँ तेरे फ़साने से……………….
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